बिरहा का सुल्तान : शिव कुमार ’बटालवी’
(अवसर विशेष --- पुण्य तिथि 6 मर्इ 2013)
शिव कुमार बटालवी पंजाबी साहित्य में सर्वाधिक पढ़ा तथा गाया जाने वाला कवी हुआ है जो 1967, में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाला सबसे कम उम्र का साहित्कार बना जो न केवल गीत तथा कविताएं लिखता ही था बलिक अपनी रचनाओं को तरनुम्म में पढ़ता तथा गाता भी था। शिव कुमार बटालवी का जन्म 23 जुलार्इ 1936 को बड़ा पिंड लोहटियां जिला सियालकोट में हुआ था जो विभाजन उपरांत अब पाकिस्तान में हैं। भारत देश की आजादी तथा बंटवारे के पश्चात शिव कुमार बटालवी ने भारत के हिस्से आए पंजाब प्रांन्त के बटाला में आकर निवास किया तथा उसी पर आधारित शिव कुमार का तखल्लुस हुआ बटालवी। बचपन से ही मस्त तथा स्वच्छन्द स्वभाव के शिव का बचपन गांव के परिवेश में नदियों, तालाबों, पेड़ों, बादलों, हरियाली तथा प्रकृति के अनेक रंगों के बीच ही बीता । शायद यही कारण है कि उसके गीतों में उन सबका उल्लेख बहुतात में मिलता है।
उसने मात्र 31 वर्ष की आयु में अपने शाहकार
‘लूणा’ नामक कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया ।वह भारत के कुछ गिने चुने ऐसे कवियों में से एक है जो सरहद के दोनों ओर पढे़ और गाये जाते हैं तथा आज भी विख्यात हैं। 1953 में दसवीं की परीक्षा उतीर्ण करने के उपरांत शिव पंजाब यूनिवर्सिटी चण्डीगढ़, कि्रस्चन कालेज बटाला, कादियां, बैजनाथ हिमाचल प्रदेश तथा सरकारी रिपुदमन कालेज नाभा में भी पढा़ ।
शिव की प्रीत पंजाब के एक तात्कालीन सुप्रसिध्द लेखक की बेटी से लड़ी लेकिन पारिवारिक जातियों में भिन्नता होने के कारण शिव की प्रीत अधूरी ही रही तथा उस लड़की के पिता ने उसकी शादी अमेरिका के एक निवासी से कर दी। यही वह दौर था जब शिव ने अपनी बिछड़ी हुर्इ प्रेमिका के बिरह में ऐसे ऐसे गीत एंव कविताएं रची कि शिव कुमार को बिरहा का सुल्तान कहा जाने लगा ।
शिव कुमार ने अनेक बहुचर्चित गीत रचे जैसे
अदधी राती देस चम्बे दे चम्बा खिडि़या हो ------
अज दिन चढिया तेरे रंग वरगा
---------(हिन्दी फिल्म लव आजकल में)
माए नी ! मैं इक शिकरा यार बणाया------
रात चानणी मैं तुरा, मेरे नाल तुरा परछावां -------
माये नीं माये मेरे गीतां देयां नैणा विच -------
शिव का प्रथम कविता संग्रह 'पीडा़ दा परागा' 1960 में प्रकाशित हुआ जब शिव मात्र 24 वर्ष का ही था। यह कविता संग्रह शिव की साहितियक सफलताओं की नींव साबित हुआ जिसने शिव को विख्यात कर दिया । 5 फरवरी 1967 में गुरदासपुर जिले की एक लड़की से शादी के बाद 1968 में वह चंडीगढ़ जाकर परिवार सहित रहने लगा जहां उसने भारतीय स्टेट बैंक में जनसंम्पर्क अधिकारी के रूप में नौकरी की । शिव के दो बच्चे हुए मेहरबान (1968) तथा पूजा (1969)।
अपनी कविताओं में अक्सर मृत्यु का जिक्र करने वाला शिव मात्र 38 वर्ष की आयु में ही 6 मर्इ 1973 को इस संसार को अलविदा कह कर चला गया। शिव के मरणोपरांत उसकी कविताओं के संग्रह 'अलविदा' को गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर के द्वारा प्रकाशित किया गया। उसी महान कवी
की
याद में शिव कुमार बटालवी पुरस्कार हर वर्ष एक उतम साहित्कार को प्रदान किया जाता है। आज शिव कुमार बटालवी भले ही शारिरिक रूप से इस संसार में विधमान नहीं हैं लेकिन जगजीत सिहं, चित्रा सिहं, दीदार सिहं परदेशी, सुरिन्द्र कौर, डोली गुलेरिया, महेन्द्र कपूर, हंस राज ’हंस’, आसा सिहं मस्ताना, भूपेन्द्र-मिताली तथा नुसरत फतह अली खान की आवाजों में गाए गए शिव के वैराग्य तथा प्रेम भरे अनूठे गीतों के माध्यम से शिव आज भी हमारे बीच मौजूद हैं तथा हमेशा अमर रहेगा ।उनकी पुण्य तिथि पर उन्हे हमारी भावभीनी श्रध्दाजंली अर्पित है।
सुनील कुमार ’नील’ मण्डी (हिमाचल प्रदेश)
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