विनाशकारी पहिये की तेजरफतारी
आदि-मानव ने जब भारी वस्तुओं को स्थानांतरित करने अथवा यातायात को सुविधाजनक बनाने हेतू पहिये का अविष्कार किया होगा, तब उसने ऐसा कदाचित न सोचा होगा कि यही पहिया एक दिन इतनी रफतार धारण कर लेगा कि स्वं मानव ही उस पर अपना नियन्त्रण खो बैठेगा तथा पहिये की यह अनियनित्रत रफतार अनेक परिवारों के आगनों में अल्पविराम, विराम अथवा प्रश्नचिन्ह अंकित कर देगी। आदि मानव ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा कि स्ंव मानव ही अपने विनाश हेतू इस पहिए को इतनी तीव्र गति से घुमायेगा कि स्ंव यमराज को भी अपना कर्म निभाते हुए रोना आ जायेगा तथा उसके यमदूतों को अनेकानेक आत्माओं को परम-आत्मा में अकस्मात विलीन करने के लिए अपने सामर्थय से अधिक भागदौड़ करनी पडे़गी। न जाने क्यों कभी-कभी तेज रफतार से घूमते पहिये का स्वरूप किसी परमाणू -बम जैसा लगने लगता है जो कुछ ही क्षणों में अनेक जीवों के प्राण हर लेता है।
8 मर्इ 2013 की दोपहर बाद में हिमाचल प्रदेश की एक निजि बस का पहिया भी स्वं एक चालक मानव द्वारा इस प्रकार तीव्र गति से घुमाया गया कि स्ंव चालक मानव ही उस बस पर से अपना नियन्त्रण खेा बैठा तथा वह बस जिला मण्डी के झीड़ी गांव के पास किसी खिलौना-बस की तरह तीन-चार बार घूमती-लुढ़कती हुर्इ व्यास दरिया के बीच उल्टी जा टिकी तथा जिसमें बैठी तथा खड़ी सवारियां यह भी न समझ पार्इ कि अचानक यह क्या हो गया है तथा उल्टी जा टिकी उस बस में उल्टी-टेढी होते हुए चोटिल होकर सभी सवारियां बस रूपी पिंजरे में बंद होकर पानी में समा गर्इ। ऐसी अवस्था में बडे़ तथा सूझवान सवार भी ज्यादा देर सांस रोककर नहीं रह पाये तो सोचिए कि उन बच्चों की क्या हालत हुर्इ होगी जो अबोध रूप में घबराए हुए यथावत सांस लेनें का प्रयास करते रहे होगें तथा पानी उनके फेफड़ों में भरता गया होगा और किस तरह कुछ पलों में ही वह बेहोश होने के बाद अपने दम तोड़ गये होगें। जरा सोचिए कि कैसी रही होगी अंतिम मनोसिथति उन अभिभावकों की जिन्होने मटमैले-पानी में डूबे हुए अपने बच्चों को मरता हुआ देखने के तुरन्त बाद अपने भी प्राण त्याग दिये होगें। भगीरथ ने सामूहिक रुप से मृत्यु को प्राप्त हुए अपने पूर्वजों के उद्वार तथा गति हेतू गंगा को धरती पर अवतरित करने हेतू वषोर्ं तक कठोर तप किया था लेकिन उक्त बस दुर्घटना में तो स्ंव जल के माध्यम से ही अनेक निर्दोष व्यकित अपने प्राण त्याग गये। उनकी असमय, आक्सिमक तथा सामूहिक मृत्यु पर तो स्वं जलदेव को भी रोना आ रहा होगा।
कहा जाता है कि एक बुद्विमान व्यकित अनेक जीवों का उद्वार कर सकता है लेकिन एक मूर्ख व्यकित अनेक जीवों कें संहार का कारण बन सकता है। हम सभी भलिभांति परिचित हैं कि हिमाचल प्रदेश्ज्ञ एक पहाड़ी प्रदेश है जिसमें पहाड़ों के कन्धों पर ही सड़कों का जटिल निर्माण किया गया है जिनके एक तरफ पहाड़ हैं तो दूसरी तरफ गहरी खार्इयां। यह प्राकृतिक विडम्बना ही है कि लगभग प्रत्येक सड़क का स्वरुप किसी बलखाती नागिन का सा होता है जो एक तरह से स्वं ही खतरे का पूर्व आभास करवाने वाले किसी सूचना-पटट की तरह होता है जो हमें सावधान करता है कि हम अपने वाहनों को निर्धारित गति-सीमा में रहकर सावधानी पूर्वक चलाएं, लेकिन हम है कि अपनी लेट-लतीफी के प्रभाव को कम करने के लिए अपने वाहन की गति को असीमित रुप से त्वरित कर देते हैं तथा उस तीव्र गति के रुप में जलती हुर्इ अगिन में तब स्वं ही घी को भी डाल बैठते हैं जब हम वाहन चलाते हुए अपने मोबार्इल-फोन का इस्तेमाल कुछ इस तरह करने लगते हैं जैसे कि हमारे तीन हाथ हों तथा दो मसितष्क। हम यह भूल जाते हैं कि हम एक साधारण सारथी हैं और भगवान कृष्ण की शिक्षाओं का अनुसरण करने की अपेक्षा हम श्री कृष्ण का अनुकरण करने का प्रयास करने लगते हैं। लेकिन मानव सामर्थय की एक सीमा होती है जिसका उल्लंघन सर्वदा घातक परिणामों से लिप्त ही होता है। पहिया तथा मोबार्इल फोन इत्यादि मानव ने मानव ही की सुविधा हेतू निर्मित किये हैं, न कि दुविधा उत्पन्न करने हेतू।
इन तथ्यों से पाठक अवश्य सहमत होगें कि सरकारी बसों की अपेक्षा निजी-बसें हादसों का शिकार अधिक बनती हैंै क्योंकि उनमें अक्सर चालक कम आयु के अथवा अल्प-प्रशिक्षित होते हैं, विभिन्न निजी बसों में सवारियां उठाने की आपसी स्पर्धा विनाशक रुप में विधमान रहती है, निजी गांडियों में गीत-संगीत काफी उंची आवाज में लगातार बजता रहता है जिसके गीतों के चयन तथा उन्हे लगातार बदलते रहने का अतिरिक्त कार्य भी स्वं चालक ही करते हैं, चालक ने अपने बार्इं ओर परिचालक को अथवा अपने किसी मित्र एवं परिचित को ही सीट दी होती है जो लगातार बातें करते हुए चालक का अतिरिक्त मनोरंजन करता रहता है। चालक अपने आपको फार्मूला-1 रेस का प्रतियोगी समझता है, संकरी सड़कों पर भी ओवरटेकिंग करने को अपनी कला का प्रदर्शन मानता है, बस के अन्दर लगे बैक-मिरर को कभी-कभी सिनेमा की स्क्रीन भी समझ बैठता है तथा बिजली की नंगी तारों पर गीले कपडे़ सुखाने का अदभुत खेल तो तब शुरु होता है जब चालक अपने मोबार्इल का इस्तेमाल गाड़ी चलाते समय ही करता है। अपवाद हर क्षेत्र में होते हैं लेकिन सरकारी बसों के अधिकतर चालक इस प्रकार की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों को नहीं अपनाते तथा अपनी सवारियों को उनके गंतव्य स्थान पर सुरक्षित पहुचानें के कार्य को पूर्ण दक्षता के साथ निभाने का भरपूर प्रयास करते हैं।
बसों के सड़क हादसों में यदि 95 फीसदी योगदान चालक अथवा परिचालक का होता है तो 5 फीसदी योगदान उन सवारियों का भी होता है जो उक्त सारी हरकतों को लगातार नजरअंदाज करके मूकदर्शक बनकर खतरों भरे सफर तय करती रहती है। यदि कोर्इ चालक इस तरह की गलती करता है तो सवारियों को वाहिए कि भले ही वह सामाजिकता के बंधन में उसकी शिकायत सम्बंधित अधिकारी को न दें किन्तु स्वं ही सामूहिक रुप में एक स्वर होकर उसकी गलत हरकतों का तत्काल विरोध करें ताकि यथावत सुधार हो। यदि फिर भी कोर्इ सही परिणाम निकलता न दिखे तो सम्बंधित अधिकारी को शिकायत करने में संकोच नहीं करना चाहिए। याद रखिए कि सवारियों की सूझबूझ तथा अनियमितताओं का विरोध जतलाने की ताकत का यह 5 प्रतिशत ही चालक की 95 प्रतिशत गलितयों पर भारी पड़ सकता है। जरा सोचिए कि 8 मर्इ 2013 को झीड़ी गांव में हादसाग्रस्त हुर्इ बस में सवार यात्रियों ने यदि उस तेज-रफतारी में मदहोश, कुचालक को उसकी गलितयों के लिए टोका होता तो शायद आज लगभग 40 घरों की खुशहाली भरी दीवारों को तेज-रफतारी भरे पहिये ने रौंदकर उन्हें शमशान -भूमि जैसा मातम तथा वीरानापन न दिया होता ।
सुनील कुमार नील संगरुर ; पंजाब 094184.70707
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