Sadaa Muskuraaunde Hi Raho ! [Name of my Ustaad: Dr. (Mrs.) Manu Sharma Sohal Ji]

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Tuesday, 20 May 2014

Hindi Poem 'Triskrit-Hindi' wins third prize


Nagar Raajbhaashaa Karyaanvay Samitee, Patiala’s half-yerly meeting held at Income Tax Office, Patiala on 20th May, 2014 during which the prize distribution in respect of Hindi promotional events conducted in the 2nd half of year-2013 was also held in which this meek fellow has been awarded with the third prize for his following Hindi poem titled ‘Triskrit-Hindi’ which has also been published by the Samitee in the very first issue of its magazine named ‘Raajbhaashaa Darpan’, released during the said meet.

तृस्कृत हिन्दी

पूछती है घुप अन्धेरे में से निकली  ये किरण
क्या मेरे प्रकाश को आवास देगा ये चमन

बादलों के पार से हूं झांकती शर्मा के मैं
पुष्प जब हंसते हैं तो लोटती घबरा के मैं
क्यूं भंवर करते नहीं अब मेरे शब्दों का गुंजन
क्यूं मुझी को कोसता अब मेरा अपना नील-गगन
पूछती है……
कल जो कलियां थे वही पुष्प हैं अब हो चुके
शब्द मेरे उनके मुख से रूष्ट हैं अब हो चुके
जिनकी लारों से टपकती थी मैं बन कर तोतली
क्यूं उन्होंनें कर दिया मेरे मातृत्व का हनन्
पूछती है……
तख्तियों पर बंध लटकती अपनों की आंखों में खटकती
वर्ष में इक बार केवल मेरी किस्मत है चमकती
घर हो या दफ्तर हो कोई या कोई मन की गली
क्यूं है घटता जा रहा अब हर जगह मेरा चलन
पूछती है……
संतान भारत वर्ष की थी मेरे आंचल में पली
अब मैं तो जैसे मर चुकी बस मां अंग्रेज़ी हो चली
जिस देश के वीरों नें दी मेरे लिये अपनीं बली
क्यूं उन्हीं की पीढ़ियों नें मुझ पे पहनाए कफन

पूछती है घुप अन्धेरे में से निकली  ये किरण
हुंह...क्या मेरे प्रकाश को आवास देगा ये चमन

सुनील कुमार 'नील'


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